शुगर डायबिटीज के प्रकार- Type1 ,Type2 और Gestational डायबिटीज (In Hindi)

शुगर डायबिटीज के प्रकार- Type1 ,Type2 और Gestationalआपमें से बहुत से लोग डायबिटीज के प्रकार जानना चाहते होंगे | आइए हम आपको अपनी पोस्ट में विस्तार में डायबिटीज के प्रकार केबारे में समझायेंगे| आजकल की इस भागदौड़ वाली ज़िन्दगी में अनियमित लाइफस्टाइल के चलते डायबिटीज सर्वाधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है | डायबिटीज यानि शुगर/मधुमेह की बीमारी का पता व्यक्ति को तुरंत नहीं चलता | व्यक्ति को छोटी मोटी दिक्कतें होती हैं | जैसे- ज्यादा भूख लगना,  धुंधला दिखाई देना,प्यास लगना, थकान होना आदि| लेकिन हम इन लक्षणों परध्याननहीं देते | यही कारण हे की आज कल  डायबिटीज यानि शुगर/मधुमेह की बीमारी बहुत ज्यादा फ़ैल रही है|

डायबिटीज के प्रकार (type of  Diabetes) : डायबिटीज 3 प्रकार की होती है

1) टाइप 1 डायबिटीज :  

डायबिटीज के प्रकार में पहला हे “टाइप 1 डायबिटीज”| यह तब होता है जबआपकी बॉडी इन्सुलिन  बनाना बंद कर देती है|ऐसे में मरीज को बाहर से इंसुलिन देनी पड़ती है|इसे  insulin-dependent diabetes mellitus,IDDM भी कहते हैं टाइप 1डायबिटीज बच्चों में होती है|टाइप 1 में लक्षण पहले से दिखते हैं।जैसे कि

  • बच्चे को ज्यादा पेशाब आना तथा बिस्तर गीला होना|
  • निरंतर प्यास लगना|
  • अत्यधिक भूख लगना।
  • आँखों से धुंधला दिखाई देना |
  • बिना स्पष्ट कारण के कमजोरी|
  • थकान महसूस होना।
  • वजन कम होना
  • ज्यादा भूख लगने के बाद भी वजन कम होना|

इसके दो कारण हैं।

  • अनुवांशिक –  मतलब कि परिवार में पहले से ही किसी को टाइव 1 डायबिटीज है।
  • अनुवांशिक प्रवृत्ति के दौरान – किसी को बचपनमें वायरल इंफेक्शन, चिकन पॉक्स, मिजल्स,मम्स या रूबेला जैसी गंभीर बीमारी का होना।

इससे इम्यून सिस्टम को चोट लगती है |और वह पेनक्रियाज को पहचानने से इंकार कर देता।उसके बाद इम्यून सिस्टम पेनक्रियाज को नष्टकरने की प्रक्रिया शुरू कर देता है|टाइप 1 डायबिटीज के बच्चों को सारी जिंदगी इंसुलिन लेनी पड़ती है। इन बच्चों को कभी इंसुलिन नहीं बंद करनी चाहिए। यदि ऐसा करते है,तो उनकी मृत्यु हो सकती है।

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2) टाइप 2 डायबिटीज: 

डायबिटीज के प्रकार में दूसरा हे “टाइप 2 डायबिटीज” | यह तब होता है जब आपके सेल्स produce हो रही इंसुलिन पर प्रतिक्रिया नहीं करते|इसे non-insulin-dependent diabetes mellitus, NIDDM भी  कहते है| टाइप 2 डायबिटीज, जो मध्य आयुवर्ग (35 वर्ष के बाद) और बुजुर्गों को होता है। अक्सर ये लोग मोटे होते हैं। सबसे खास बात यह है कि 50 प्रतिशत मरीजों में इसके लक्षण नहीं दिखते हैं। इसीलिए इसे साइलेंट किलर कहते हैं। जब लक्षण नहीं होते तो व्यक्ति जांच क्यों कराएगा? इसलिए  हर व्यक्ति 45 साल की उम्र के बाद डायबिटीज की जांच करवाएं।

यह बहुत धीरे-धीरे शरीर पर प्रभाव डालता है। इससे शरीर के छह अंग प्रभावित होते हैं। पहला आंख, दूसरा किडनी, तीसरी नर्व सिस्टम, चौथा हार्ट, पांचवां ब्रेन स्ट्रोक या लकवा और छठा पैर पर। यदि शुगर लेवल लंबे समय से बढ़ा है| और कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं ,तो शरीर के इन अंगों पर प्रभाव डालता है |और व्यक्ति को पता भी नहीं चलता।टाइप 2 डायबिटीज के 50 प्रतिशत मरीजों को दस से 15 साल बाद इंसुलिन की जरूरत पड़ सकती है। इसके अलावा टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों को हार्ट अटैक, लकवा, इंफेक्शन व निमोनिया की शिकायत होने पर इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है।

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टाइप 2 में लक्षण पहले से नहीं दिखते है पर धीरे धीरे जब लक्षण  पता चलते है जैसे –

  • भूख लगते रहना|
  • सुस्ती, थकान|
  • वजन घटना|
  • ज्यादा प्यास लगना|
  • बार बार मूत्र करना|
  • मुंह सूख जाना, त्वचा में खुजली|
  • और आँखों का धुंधलाना|
  • शुगर के स्तर में बढ़ोतरी|
  • त्वचा पर काले पैच|
  • घाव जल्दी से ना भरना|
  • पैर में तकलीफ|
  • और हाथों में सुन्नपन|
  •  शरीर में संक्रमण|

टाइप 2 डायबिटीज होने का कोई एक विशेष कारण नहीं है| लेकिन कई लोगों में दूसरों के मुकाबले इस रोग का अधिक खतरा होता है। ऐसे लोगों में मुख्यतः शामिल हैं |

  • 40 वर्ष से अधिक उम्र होना|
  • शरीर का वज़न ज्यादा होना|
  • आराम तलब जीवन|
  • ज्यादा कैलोरी वाला फ़ास्ट फ़ूड खाना|
  • परिवार में किसी सदस्य का डायबिटीज से पीड़ित होना|

टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज को ही हम Diabetes mellitus कहते है| यह बहुत ही आम बीमारी है और अधिक तर लोगो में यही होती है|यह इंसुलिन या इंसुलिन की कमी के hyposecretion के कारण होती है| 

3) Gestational diabetes :

डायबिटीज के प्रकार में तीसरा हे “Gestational डायबिटीज” |ये ऐसी महिलाओं को होता है, जो गर्भवती हों और उन्हें पहले कभी diabetes ना हुआ हो|ऐसा pregnancy के दौरान खून में ग्लूकोज़ की मात्रा (blood sugar level) आवश्यकता से अधिक हो जाने के कारण होता है|

अगर हम जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षणों के बारे में बात करें, तो इसे पहचाना बहुत ही मुश्किल होता है, इसके बारे में बिना जांच करवाएं पता नहीं किया जा सकता। इसमें सबसे हैरानी की बात यह है कि इसका कोई लक्षण पनपने के बाद भी सामने नहीं आता।

इसलिए हमें इसकी जांच जरूर करवानी चाहिए। क्योंकि इसका असर माँ को ही नहीं बल्कि बच्चे पर भी सीधा पड़ता है। डायबिटीज के लक्षण वैसे दिखाई नहीं देते, लेकिन जब भी कोई समस्या हो तो हमें तुरंत डॉक्टर के पास जाकर अपना चेकअप करवाना चाहिए जैसे कि :

  • बार बार प्यास लगना
  • जल्दी- जल्दी यूरीन का आना
  •  भूख अधिक लगना
  •  नजरों के आगे अँधेरा आना आदि।

गर्भवती महिलाओँ को अक्सर इन लक्षणों से गुजरना पड़ता है, इसलिए हम यह भी नहीं कह सकते कि ये गर्भवती मधुमेह के लक्षण होते हैं, लेकिन हमें इस लक्षणों के बारे में डॉक्टर से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

इस पोस्ट में हमने प्रयास किया की आपको आसन भाषा के  डायबिटीज के प्रकार के बारे में बताये | आशा करते हे हमारा प्रयास सफल रहा |

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